मनाई गई स्वामी राधा कृष्ण परमहंस की 192 वी जयंती
जमालपुर। प्रखंड संतमत सत्संग समिति के तत्वाधान में बड़ी आशिक पूरी स्थिति स्वर्गीय मधुसूदन बाबा के आवास पर आचार्य स्वामी राधा कृष्ण परमहंस जी की 192 वी जयंती मनाई गई। प्रखंड संतमत सत्संग समिति के अध्यक्ष प्रमोद यादव ने जयंती समारोह की अध्यक्षता एवं सचिव उदय शंकर स्वर्णकार ने संचालन किया। कार्यक्रम के आरंभ में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की तैलीय चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए सत्संग, प्रवचन, भजन एवं रामकृष्ण परमहंस के वाणियों का पाठ किया गया। सूचना प्रचार मंत्री राजेंद्र कुमार चौरसिया ने कहा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत एवं विचारक थे। 1836 ईसवी में बंगाल प्रांत स्थित हुगली जिला के कामारपुकुर में जन्मे रामकृष्ण परमहंस जी ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठोर साधना की थी। इनके बचपन का नाम गदाधर था सन्यास ग्रहण करने के बाद उनका नया नाम श्री रामकृष्ण परमहंस हुआ। उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म की भी साधना की। साधना के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संसार के सभी धर्म अच्छे हैं। और उनमें कोई भिन्नता नहीं है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मानवीय मूल्यों के पोषक थे। उनका उपदेश था कि कामिनी कंचन ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं। वह जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। वह 16 अगस्त 1886 को सवेरा होने के कुछ ही वक्त पहले इस नश्वर देह को त्यागकर महासमाधि में चले गए वह महान योगी उच्च कोटि के साधक थे। अध्यक्ष प्रमोद यादव एवं सचिव उदयशंकर स्वर्णकार ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे। जब विवेकानंद अपने गुरु से हिमालय में तपस्या करने के लिए जाने के लिए आज्ञा मांगने गए, तो रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें आज्ञा दी कि तुम हिमालय में तपस्या नहीं कर दरिद्र नारायण की सेवा करो। यही सबसे बड़ी तपस्या होगी। मौके पर कारेलाल मंडल, शंभू तांती, सीताराम वैद्य, अधिवक्ता आशीष कुमार, चंद्रशेखर मंडल, सतीश चंद्र दास, गुरुदास कुमार, राजेश सरस्वती, पवन चौरसिया, जवाहर तांती, शिवचरण साह, दिवाकर कुमार, प्रमोद तांती, रामसरन तांती, प्रभात कुमार गुप्ता, वासुदेव मंडल, सिद्धांत कुमार अंबष्ट, कपिलदेव प्रसाद यादव, दिनेश साह, नागेश्वर पासवान एवं सूचित मंडल मौजूद थे।
जमालपुर। प्रखंड संतमत सत्संग समिति के तत्वाधान में बड़ी आशिक पूरी स्थिति स्वर्गीय मधुसूदन बाबा के आवास पर आचार्य स्वामी राधा कृष्ण परमहंस जी की 192 वी जयंती मनाई गई। प्रखंड संतमत सत्संग समिति के अध्यक्ष प्रमोद यादव ने जयंती समारोह की अध्यक्षता एवं सचिव उदय शंकर स्वर्णकार ने संचालन किया। कार्यक्रम के आरंभ में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की तैलीय चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए सत्संग, प्रवचन, भजन एवं रामकृष्ण परमहंस के वाणियों का पाठ किया गया। सूचना प्रचार मंत्री राजेंद्र कुमार चौरसिया ने कहा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत एवं विचारक थे। 1836 ईसवी में बंगाल प्रांत स्थित हुगली जिला के कामारपुकुर में जन्मे रामकृष्ण परमहंस जी ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठोर साधना की थी। इनके बचपन का नाम गदाधर था सन्यास ग्रहण करने के बाद उनका नया नाम श्री रामकृष्ण परमहंस हुआ। उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म की भी साधना की। साधना के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संसार के सभी धर्म अच्छे हैं। और उनमें कोई भिन्नता नहीं है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस मानवीय मूल्यों के पोषक थे। उनका उपदेश था कि कामिनी कंचन ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं। वह जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। वह 16 अगस्त 1886 को सवेरा होने के कुछ ही वक्त पहले इस नश्वर देह को त्यागकर महासमाधि में चले गए वह महान योगी उच्च कोटि के साधक थे। अध्यक्ष प्रमोद यादव एवं सचिव उदयशंकर स्वर्णकार ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे। जब विवेकानंद अपने गुरु से हिमालय में तपस्या करने के लिए जाने के लिए आज्ञा मांगने गए, तो रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें आज्ञा दी कि तुम हिमालय में तपस्या नहीं कर दरिद्र नारायण की सेवा करो। यही सबसे बड़ी तपस्या होगी। मौके पर कारेलाल मंडल, शंभू तांती, सीताराम वैद्य, अधिवक्ता आशीष कुमार, चंद्रशेखर मंडल, सतीश चंद्र दास, गुरुदास कुमार, राजेश सरस्वती, पवन चौरसिया, जवाहर तांती, शिवचरण साह, दिवाकर कुमार, प्रमोद तांती, रामसरन तांती, प्रभात कुमार गुप्ता, वासुदेव मंडल, सिद्धांत कुमार अंबष्ट, कपिलदेव प्रसाद यादव, दिनेश साह, नागेश्वर पासवान एवं सूचित मंडल मौजूद थे।
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