Tuesday, 31 October 2017

मुंगेर/जमालपुर👉कश्मीर से कन्याकुमारी तक आज अगर देश एक है तो सरदार वल्लभ भाई पटेल की वजह से : समादेष्टा धीरज कुमार (आईपीएस)

मुंगेर||उप संपादक प्रिंस दिलखुश की खबर।

जमालपुर।बिहार सैन्य पुलिस बल (बीएमपी-9) जमालपुर के परेड ग्राउंड में सरदार वल्लभ भाई पटेल जन्म जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीएमपी-9 समादेष्टा श्री धीरज कुमार(आईपीएस) ने जवानों को शपथ दिलाई👉 की मैं सत्यनिष्ठा से शपथ लेता/लेती हूं कि मैं राष्ट्र एकता,अखण्डता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए स्वयं को समर्पित करूंगा/करूंगी और अपने देशवासियों के बीच यह संदेश फैलाने का भी भरसक प्रयास करूंगा/करूंगी ।मैं यह शपथ अपने देश की एकता की भावना से ले रहा/रही हूं।जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता एवं कार्यो द्वारा संभव बनाया जा सके।मैं अपने देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान करने का भी सत्यनिष्ठा से संकल्प करता/करती हूँ।जय हिंद।

राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाये गए सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीएमपी(9) समादेष्टा श्री धीरज कुमार ने कहा कि आज अगर भारत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक है तो इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान देश के पहले गृहमंत्री लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का है।आजादी की लड़ाई से लेकर मजबूत और एकीकृत भारत के निर्माण में सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। 31 अक्टूबर को सरदार पटेल का जन्मदिन है और इसे पूरे देश एकता दिवस के तौर पर मनाता है।

उन्होंने कहा कि सरदार पटेल का जन्म साल 1875 में गुजरात के नाडियाड में हुआ था।वो झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे।बचपन में फोड़े को गर्म सलाख से ठीक करने का उनका किस्सा बेहद प्रचलित है, उस वक्त वो बच्चे थे लेकिन गर्म सलाखों से फोड़े को खत्म करने के दौरान विचलित नहीं हुए।बता दें कि उन्होंने 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी।

जवानों को संबोधित करते हुए समादेष्टा श्री धीरज कुमार ने बताया कि रियासतों का एकीकरण करने में सिर्फ और सिर्फ सरदार पटेल का योगदान अतुल्य रहा।अंग्रेजों ने देश छोड़ने से पहले अपनी करतूत दिखा दी थी।550 से ज्यादा देशी रियासतों को वह अपने भविष्य के निर्णय का अधिकार दे गए थे।उनका ये कुटिल आदेश एक षड्यंत्र जैसा था।वह दिखाना चाहते थे कि भारत अपने को एक नहीं रख सकेगा।देश के सामने आजाद होने के तत्काल बाद इतनी रियासतों को एक रखने की चुनौती सामने थी।सरदार पटेल ने बेहद कुशलता से एकीकरण कराया था।

उन्होंने बताया कि स्कूल की शिक्षा के दौरान ही सरदार पटेल अपने तेज को दिखा दिया था।दरअसल,जिस स्कूल में वो पढ़ते थे वहां के शिक्षक पुस्तकों का कारोबार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर वहीं से खरीदें।सरदार पटेल ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए लामबंद किया।फिर क्या था शिक्षकों-छात्रों के बीच विवाद और संघर्ष छिड़ गया।कुछ दिनों के लिए स्कूल बंद करा दिया गया बाद में ये प्रथा खत्म हो गई।

उन्होंने देशी रियासतों की कई श्रेणियां बनाईं।सभी से बात की,अधिकांश को सहजता से शामिल किया।कुछ के साथ सेना का सहारा लेने से भी वह पीछे नहीं हटे,मतलब देश की एकता को उन्होंने सर्वोपरि माना।

यह तक कि सरदार पटेल ने अपनी पूरी जिंदगी में कर्म को ही योग के तौर पर समझा है।इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि जब वो बतौर वकील काम कर रहे थे उस दौरान एक बार वो किसी केस के सिलसिले में कोर्ट में जिरह कर रहे थे, तभी उन्हें एक टेलीग्राम मिला,जिसे उन्होंने देखा और जेब में रख लिया।उन्होंने पहले अपने वकील धर्म का पालन किया,उसके बाद घर जाने का फैसला लिया।तार में उनकी पत्नी के निधन की सूचना थी।

श्री कुमार ने उनकी राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरदार पटेल को शुरुआती तौर पर वकालत में रूचि थी,संसाधनों की कमी होने के कारण वो विदेश पढ़ने नहीं जा सकें। उन्होंने साल 1913 से अहमदाबाद में ही अपनी वकालत शुरू की।बतौर वकील वो काफी मशहूर होते गए ऐसे में उन्हें लोगों ने सेनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ने को कहा साल 1917 में उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत भी गए। पटेल की प्रेरणा गांधी जी और उनका चंपारण सत्याग्रह हमेशा से रहा है।

उन्होंने बताया कि गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की ही तर्ज पर गुजरात के खेड़ा में किसानों की कर माफी के लिए खेड़ा सत्याग्रह चलाया गया।गांधीजी के आदेश पर इसकी अगुवाही सरदार पटेल ने ही की थी।वारदोली सत्याग्रह के जरिए भी उन्होंने पूरे देश को इसी बात का संदेश दिया था। इसके बाद भारत के गांवों में भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी थी।

श्री धीरज कुमार (आईपीएस) ने आगे कहा कि आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल केवल तीन साल ही देश सेवा का अवसर मिला।15 दिसंबर साल 1950 को उनका निधन हुआ, उस वक्त उनके बैंक खाते में महज 260 रुपये थे और अपना कोई घर नहीं था।साल 1991 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया।

मौके पर डीएसपी निसार अहमद,डॉ. प्रदीप नारायण सिंह,क्वार्टर मास्टर इंस्पेक्टर रविन्द्र चौधरी,क्वार्टर मास्टर (ll) एसआई लालदेव दास, लाइन बाबू एसआई राजबली राम,लाइन बाबू (ll) एसआई देवनारायण साडा,इंस्पेक्टर अंगेश रॉय,एसआई कलाचंद्र झा,एसआई गोपाल यादव,एसआई रविन्द्र पासवान,एसआई संजय कुमार सिंह(सिमुतल्ला),एसआई राजकुमार मिश्र,एसआई बीरेंद्र ओझा,मेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष रूपेश यादव,मंत्री अजीत मंडल,कोषाध्यक्ष धीरज सिंह,चतुर्थवर्गीय कर्मचारि एसोसिएशन के अध्यक्ष सीताराम मंडल,मंत्री धर्मेंद्र सिंह सहित अन्य जवान उपस्थित रहे।

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