नई दिल्ली/पटना || सम्पादक की कलम से || बिहार की राजनीति में एक बार फिर एक नया भूचाल आ सकता है। भारतीय राजनीति में रोजाना आ रहे बदलाव का प्रभाव बिहार की राजनीति पर पड़ता हुआ साफ दिखाई दे रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की राजनीतिक कार्यशैली ने उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य बना दिया है। पिछले कुछ माह में पीएम नरेंद्र मोदी व अमित शाह के कार्य से प्रभावित होने वालों की फेहरिश्त में सबसे पहला नाम है बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का।
जी हां! नितीश कुमार का महागठबंधन से अलग होना या भाजपा से गठबंधन कर एनडीए में शामिल होना महज एक इत्तेफाक नहीं है। बल्कि जदयू को भाजपा में विलय करने की दिशा में पहला कदम था। शायद, नितीश कुमार की इस चाल को जदयू के संयोजक सह पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने पहले ही भांप लिया। यही कारण है कि शरद यादव व उनके गुट में शामिल पार्टी कार्यकर्ताओं ने जदयू को छोड़ने की गलती नहीं की।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने जदयू को भाजपा के साथ गठबंधन कराने में तो कामयाबी हासिल कर ली है, लेकिन जदयू का भाजपा में विलय कराना नितीश कुमार के लिए काफी घातक सिद्ध हो सकता है। सूत्र बताते हैं कि अमित शाह के साथ नितीश कुमार की गुप्त करार को पूरा करने के लिए नितीश कुमार जल्दी ही भाजपा में शामिल होकर जदयू से अपना नाता तोड़ सकते हैं।
बहरहाल, शरद यादव के बगावती तेवर को देखते हुए नितीश कुमार की यह चाल दूर की कौड़ी लगती है। अमित शाह भी इसको लेकर कोई जल्दबाजी नहीं दिखाना चाहते हैं। इसलिए वह फिलहाल नितीश कुमार को एनडीए का संयोजक बनाकर नितीश खेमे के विधायकों व कार्यकर्ताओं को भगवा रंग में रंगने की जुगत में हैं।
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