भारत के विकास की बुनियाद मानी जाने वाली पंचवर्षीय योजना आज से इतिहास बन गई है।
एक अप्रैल, 1951 को शुरु हुआ पंचवर्षीय योजनाओं का सफर 31 मार्च, 2017 को खत्म हो गया।
मुंगेर (एनएच लाइव बिहार से प्रिंस दिलखुश।)
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) के शुरु होने के दो साल बाद 1953 में ये बातें कही कही थीं। कुछ ही साल पहले आजादी पाने वाले भारत के सामने उस समय कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां थीं।
ये चुनौतियां इतनी बड़ी थीं कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल सहित कई आलोचक एक लोकतांत्रिक देश में भारत के बचे रहने पर संदेह जता चुके थे।आजादी के आंदोलन में तपे नेता इन चुनौतियों से अनजान नहीं थे।1946 में ही पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने केसी नियोगी की अध्यक्षता में एक सलाहकारी नियोजन बोर्ड बना दिया था।इसने अपनी रिपोर्ट में योजना आयोग बनाने का सुझाव दिया था।इस पर सरकार ने 15 मार्च, 1950 को अपनी सहमति दे दी और यह संस्था वजूद में आ गई।
‘मैं तब तक आराम से नहीं बैठ सकता जब तक कि इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम सुविधाएं हासिल नहीं हो जाती।एक राष्ट्र को जांचने के लिए पांच-छह साल का वक्त काफी कम होता है।आप 10 साल और इंतजार कीजिए।इसके बाद आप पाएंगे कि हमारी योजनाएं इस देश का नजारा ऐसे बदल देंगी कि दुनिया भौचक्की रह जाएगी।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले इस आयोग को देश में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर विकास के लिए एक प्रभावी योजना बनानी थी।इसे अंतिम मंजूरी राष्ट्रीय विकास परिषद देती थी।इसके अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री ही थे।राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें पदेन सदस्य थे।जवाहर लाल नेहरू तत्कालीन सोवियत संघ की चार वर्षीय योजना और इसकी सफलता से प्रभावित थे।इसलिए उन्होंने इसी तर्ज पर एक अप्रैल 1951 से देश में पंचवर्षीय योजना की शुरूआत की गई। तब से चले आ रहे इस सिलसिले पर अब मोदी सरकार ने रोक लगा दी है। यह सिलसिला 12 योजनाओं सहित सात वार्षिक योजनाओं से मिलकर बना था।
उपलब्धियां और विफलताएं।
शुरुआत में कई लोगों के मन में इस योजना के सफल होने को लेकर संदेह था।हालांकि 1956 में पहली पंचवर्षीय योजना के नतीजे ने इस पर उठ रहीं आशंकाएं काफी हद तक कम कर दीं। इस योजना के दौरान विकास दर 3.6 फीसदी दर्ज की गई जबकि लक्ष्य 2.1 तय किया गया था।इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय सहित अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई थी जबकि,दूसरी (1956-61) में औद्योगिक क्षेत्रों को।इन पांच वर्षों में दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), भिलाई (छत्तीसगढ़) और राउरकेला (ओडिशा) में इस्पात संयंत्र की स्थापना की गई. इस योजना में उद्योगों को वरीयता देने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन में कमी आई. नतीजतन महंगाई बढ़ गई।दूसरी पंचवर्षी योजना में विकास दर का लक्ष्य 4.5 फीसदी तय किया गया था।लेकिन यह 4.2 फीसदी रही।
तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) में पहले से तय की गई विकास की गति को और आगे बढ़ाने का लक्ष्य था। लेकिन इस दौरान देश को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।1962 में चीन का हमला,इसके दो साल बाद नेहरू का निधन और फिर 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी। इन वजहों से यह योजना बुरी तरह विफल रही।
1966 में चौथी पंचवर्षीय योजना की शुरूआत न करके 1969 तक तीन वार्षिक योजनाएं चलाई गईं।इन वार्षिक योजनाओं के दौरान ही हरित क्रांति की शुरूआत हुई जिसकी वजह से देश न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ बल्कि,दूसरे देशों को अनाज निर्यात करने की स्थिति में आ गया।
चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में तेजी से विकास दर हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया था।पहले दो वर्षों तक तो स्थिति अच्छी थी लेकिन, इसके बाद बिजली संकट और महंगाई के साथ बांग्लादेश शरणार्थी की समस्या और 1971 में पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध ने इस योजना की गति को काफी पीछे धकेल दिया था. आखिर में 5.7 की जगह केवल 3.3 फीसदी विकास दर ही हासिल की जा सकी।
अस्थायी विराम।इसके बाद पांचवीं पंचर्षीय योजना।लेकिन 1974 में शुरू हुई इस योजना को मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने तय अवधि से एक साल पहले ही यानी 1978 में खत्म कर दिया।इसकी जगह छह साल की अनवरत योजना (रोलिंग प्लान) की शुरूआत की गई थी।लेकिन, 1980 में सत्ता में वापसी करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे रद्द कर दिया और पंचवर्षीय योजना का टूटा सिलसिला फिर शुरू हो गया।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) में गरीबी और क्षेत्रीय विषमता को खत्म करने का लक्ष्य तय किया गया था।इस योजना में विकास दर के लिए 5.2 फीसदी का लक्ष्य था।इस लिहाज से योजना को सफल कहा जा सकता है क्योंकि योजना की समाप्ति पर यह दर 5.4 फीसदी दर्ज की गई।
इसके बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) आई।इसके तहत खाद्यान्न उत्पादन और रोजगार के अवसरों में तेजी लाने की बात कही गई थी।विकास दर की दृष्टि से यह योजना भी सफल रही और जीडीपी वृद्धि दर 5.8 फीसदी दर्ज की गई।
फिर रोक।1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनने के बाद पंचवर्षीय योजना पर एक बार फिर रोक लगा दी गई।इसकी जगह 1990-92 के बीच दो वार्षिक योजनाएं चलाई गईं। यह वह वक्त था जब भारत विदेशी मुद्रा संकट की वजह से आर्थिक संकट का सामना कर रहा था।राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई और आर्थिक सुधारों के साथ ही आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) की शुरूआत भी की गई। इस योजना के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 6.8 फीसदी दर्ज की गई जो लक्ष्य से 1.2 फीसदी ज्यादा थी।
इस योजना में बड़ी सफलता हासिल करने के बाद ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ का मकसद तय कर नौंवी पंचवर्षीय योजना (1997-2002) लाई गई. हालांकि,इस दौरान तय विकास दर का लक्ष्य (6.5 फीसदी) हासिल नहीं किया जा सका और जीडीपी वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही।इसके बाद 10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) में आठ फीसदी के तय लक्ष्य की जगह 7.2 फीसदी और 11वीं योजना (2007-2012) में 7.7 फीसदी विकास दर हासिल की जा सकी।
2012 में 12वीं पंचवर्षीय योजना शुरू हुई. इसमें दीर्घकालीन समावेशी विकास और आठ फीसदी जीडीपी वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया था।इस योजना की अवधि 31 मार्च, 2017 को खत्म हो चुकी है।यह योजना अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी सफल रही, इसके नतीजे अभी आने बाकी हैं।
आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही पंचवर्षीय योजना को हाशिए पर धकेलना शुरू कर दिया था।जनवरी, 2015 में उसने योजना आयोग को खत्म कर दिया और नीति आयोग बनाया।
अब सरकार की नीति क्या होगी?12वीं पंचवर्षीय योजना की अवधि खत्म होने के अब क्या होगा,इस बारे में अभी तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है।हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार इसकी जगह तीन वर्षीय कार्य योजना लाने की तैयारी है।इसकी जिम्मेदारी नीति आयोग को दी गई है। इसके तहत केंद्रीय योजनाओं के तय लक्ष्यों को हासिल किए जाने की बात कही गई है।बताया जाता है कि आयोग इसके साथ 15 वर्षीय नेशनल डेवलपमेंट एजेंडा (एनडीए) और सात वर्षीय नीति पर भी काम कर रहा है।
जानकार मानते हैं कि किसी भी योजना या नीति के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की जगह लेना कतई आसान नहीं होगा। उनका मानना है कि भारत के विकास की इमारत आज जितनी भी बड़ी दिख रही है वह दरअसल वह इन योजनाओं की बुनियाद पर ही खड़ी है।
एक अप्रैल, 1951 को शुरु हुआ पंचवर्षीय योजनाओं का सफर 31 मार्च, 2017 को खत्म हो गया।
मुंगेर (एनएच लाइव बिहार से प्रिंस दिलखुश।)
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) के शुरु होने के दो साल बाद 1953 में ये बातें कही कही थीं। कुछ ही साल पहले आजादी पाने वाले भारत के सामने उस समय कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां थीं।
ये चुनौतियां इतनी बड़ी थीं कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल सहित कई आलोचक एक लोकतांत्रिक देश में भारत के बचे रहने पर संदेह जता चुके थे।आजादी के आंदोलन में तपे नेता इन चुनौतियों से अनजान नहीं थे।1946 में ही पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने केसी नियोगी की अध्यक्षता में एक सलाहकारी नियोजन बोर्ड बना दिया था।इसने अपनी रिपोर्ट में योजना आयोग बनाने का सुझाव दिया था।इस पर सरकार ने 15 मार्च, 1950 को अपनी सहमति दे दी और यह संस्था वजूद में आ गई।
‘मैं तब तक आराम से नहीं बैठ सकता जब तक कि इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम सुविधाएं हासिल नहीं हो जाती।एक राष्ट्र को जांचने के लिए पांच-छह साल का वक्त काफी कम होता है।आप 10 साल और इंतजार कीजिए।इसके बाद आप पाएंगे कि हमारी योजनाएं इस देश का नजारा ऐसे बदल देंगी कि दुनिया भौचक्की रह जाएगी।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले इस आयोग को देश में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर विकास के लिए एक प्रभावी योजना बनानी थी।इसे अंतिम मंजूरी राष्ट्रीय विकास परिषद देती थी।इसके अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री ही थे।राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें पदेन सदस्य थे।जवाहर लाल नेहरू तत्कालीन सोवियत संघ की चार वर्षीय योजना और इसकी सफलता से प्रभावित थे।इसलिए उन्होंने इसी तर्ज पर एक अप्रैल 1951 से देश में पंचवर्षीय योजना की शुरूआत की गई। तब से चले आ रहे इस सिलसिले पर अब मोदी सरकार ने रोक लगा दी है। यह सिलसिला 12 योजनाओं सहित सात वार्षिक योजनाओं से मिलकर बना था।
उपलब्धियां और विफलताएं।
शुरुआत में कई लोगों के मन में इस योजना के सफल होने को लेकर संदेह था।हालांकि 1956 में पहली पंचवर्षीय योजना के नतीजे ने इस पर उठ रहीं आशंकाएं काफी हद तक कम कर दीं। इस योजना के दौरान विकास दर 3.6 फीसदी दर्ज की गई जबकि लक्ष्य 2.1 तय किया गया था।इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय सहित अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई थी जबकि,दूसरी (1956-61) में औद्योगिक क्षेत्रों को।इन पांच वर्षों में दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), भिलाई (छत्तीसगढ़) और राउरकेला (ओडिशा) में इस्पात संयंत्र की स्थापना की गई. इस योजना में उद्योगों को वरीयता देने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन में कमी आई. नतीजतन महंगाई बढ़ गई।दूसरी पंचवर्षी योजना में विकास दर का लक्ष्य 4.5 फीसदी तय किया गया था।लेकिन यह 4.2 फीसदी रही।
तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) में पहले से तय की गई विकास की गति को और आगे बढ़ाने का लक्ष्य था। लेकिन इस दौरान देश को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।1962 में चीन का हमला,इसके दो साल बाद नेहरू का निधन और फिर 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी। इन वजहों से यह योजना बुरी तरह विफल रही।
1966 में चौथी पंचवर्षीय योजना की शुरूआत न करके 1969 तक तीन वार्षिक योजनाएं चलाई गईं।इन वार्षिक योजनाओं के दौरान ही हरित क्रांति की शुरूआत हुई जिसकी वजह से देश न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ बल्कि,दूसरे देशों को अनाज निर्यात करने की स्थिति में आ गया।
चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में तेजी से विकास दर हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया था।पहले दो वर्षों तक तो स्थिति अच्छी थी लेकिन, इसके बाद बिजली संकट और महंगाई के साथ बांग्लादेश शरणार्थी की समस्या और 1971 में पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध ने इस योजना की गति को काफी पीछे धकेल दिया था. आखिर में 5.7 की जगह केवल 3.3 फीसदी विकास दर ही हासिल की जा सकी।
अस्थायी विराम।इसके बाद पांचवीं पंचर्षीय योजना।लेकिन 1974 में शुरू हुई इस योजना को मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने तय अवधि से एक साल पहले ही यानी 1978 में खत्म कर दिया।इसकी जगह छह साल की अनवरत योजना (रोलिंग प्लान) की शुरूआत की गई थी।लेकिन, 1980 में सत्ता में वापसी करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे रद्द कर दिया और पंचवर्षीय योजना का टूटा सिलसिला फिर शुरू हो गया।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) में गरीबी और क्षेत्रीय विषमता को खत्म करने का लक्ष्य तय किया गया था।इस योजना में विकास दर के लिए 5.2 फीसदी का लक्ष्य था।इस लिहाज से योजना को सफल कहा जा सकता है क्योंकि योजना की समाप्ति पर यह दर 5.4 फीसदी दर्ज की गई।
इसके बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) आई।इसके तहत खाद्यान्न उत्पादन और रोजगार के अवसरों में तेजी लाने की बात कही गई थी।विकास दर की दृष्टि से यह योजना भी सफल रही और जीडीपी वृद्धि दर 5.8 फीसदी दर्ज की गई।
फिर रोक।1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनने के बाद पंचवर्षीय योजना पर एक बार फिर रोक लगा दी गई।इसकी जगह 1990-92 के बीच दो वार्षिक योजनाएं चलाई गईं। यह वह वक्त था जब भारत विदेशी मुद्रा संकट की वजह से आर्थिक संकट का सामना कर रहा था।राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई और आर्थिक सुधारों के साथ ही आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) की शुरूआत भी की गई। इस योजना के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 6.8 फीसदी दर्ज की गई जो लक्ष्य से 1.2 फीसदी ज्यादा थी।
इस योजना में बड़ी सफलता हासिल करने के बाद ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ का मकसद तय कर नौंवी पंचवर्षीय योजना (1997-2002) लाई गई. हालांकि,इस दौरान तय विकास दर का लक्ष्य (6.5 फीसदी) हासिल नहीं किया जा सका और जीडीपी वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही।इसके बाद 10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) में आठ फीसदी के तय लक्ष्य की जगह 7.2 फीसदी और 11वीं योजना (2007-2012) में 7.7 फीसदी विकास दर हासिल की जा सकी।
2012 में 12वीं पंचवर्षीय योजना शुरू हुई. इसमें दीर्घकालीन समावेशी विकास और आठ फीसदी जीडीपी वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया था।इस योजना की अवधि 31 मार्च, 2017 को खत्म हो चुकी है।यह योजना अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी सफल रही, इसके नतीजे अभी आने बाकी हैं।
आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही पंचवर्षीय योजना को हाशिए पर धकेलना शुरू कर दिया था।जनवरी, 2015 में उसने योजना आयोग को खत्म कर दिया और नीति आयोग बनाया।
अब सरकार की नीति क्या होगी?12वीं पंचवर्षीय योजना की अवधि खत्म होने के अब क्या होगा,इस बारे में अभी तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है।हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार इसकी जगह तीन वर्षीय कार्य योजना लाने की तैयारी है।इसकी जिम्मेदारी नीति आयोग को दी गई है। इसके तहत केंद्रीय योजनाओं के तय लक्ष्यों को हासिल किए जाने की बात कही गई है।बताया जाता है कि आयोग इसके साथ 15 वर्षीय नेशनल डेवलपमेंट एजेंडा (एनडीए) और सात वर्षीय नीति पर भी काम कर रहा है।
जानकार मानते हैं कि किसी भी योजना या नीति के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की जगह लेना कतई आसान नहीं होगा। उनका मानना है कि भारत के विकास की इमारत आज जितनी भी बड़ी दिख रही है वह दरअसल वह इन योजनाओं की बुनियाद पर ही खड़ी है।
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