मुंगेर(एनएच लाइव बिहार के लिए ब्युरो प्रिंस दिलखुश।)
जमालपुर :-25 मई 2017 को वट सावित्री व्रत पूजा पर महासंयोग बन रहा है, इसलिए सभी सुहागनों के लिए इस वर्ष यह पूजा विशेष होगी। यह व्रत ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को आता है। सुहागन स्त्रियां इस दिन सोलह शृंगार के साथ पूरे विधि-विधान से वट वृक्ष की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा का, तने में भगवान विष्णु का तथा इसकी डालियों और पत्तों में भगवान शिव का वास होता है। इसलिए इस पूजा के साथ ही स्त्रियां अपने के लिए त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
👉वट सावित्री व्रत 2017 पूजा के शुभ मुहूर्त।
25 मई को सुबह 5 बजे अमावस्या शुरु होने के साथ ही व्रत का मुहूर्त भी शुरु हो जाएगा, जो रात्रि 1 बजे तक रहेगा।
हिंदू शास्त्रों में पतिव्रता सुहागनों के लिए वट सावित्री व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इससे पति की आयु लंबी होती है और उसके जीवन पर आया हर संकट टल जाता है। इस व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही वट वृक्ष की पूजा करते हुए स्त्रियां इसके चारों ओर लाल धागा लपेटकर इसकी परिक्रमा करते है।
👉व्रत कथा।
वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार नवविवाहिता सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हरकर जब यमराज जाने लगे तो अपने पति का जीवन वापस पाने के लिए वो यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं। जब यमराज पृथ्वी की सीमा पार कर दूसरे लोक जाने लगे तो उन्होंने सावित्री से वापस जाने को कहा। सावित्री ने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया कि अपने पत्नी धर्म के अनुसार जहां तक उसके पति जाएंगे, वह भी उनके साथ जाएगी।
सावित्री का हठ देखकर यमराज ने इसके बदले उससे तीन वरदान मांगने को कहा। पहले वरदान में सावित्री ने 100 पुत्रों की माता होने का वरदान मांगा जिसे यमराज ने दे दिया। इसपर सावित्री ने यमराज को वरदान की याद दिलाते हुए कहा कि उनके व्रत के अनुसार वह सौ पुत्रों की माता तो बन सकती है लेकिन एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के बिना ऐसा कैसे कर सकती है।
यमराज वरदान दे चुके थे, इसलिए उन्होंने चने के रूप में सत्यवान का प्राण सावित्री को सौंप दिया। जब तक यह सब हो रहा था, वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के शव की रक्षा उसी वृक्ष ने की थी, इसलिए उसके प्रति अपना धन्यवाद ज्ञापन करने के लिए उसने वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत का रक्षा-सूत्र बांधा।
यही कारण है कि व्रत के दौरान चने का प्रसाद जरूर बनाया जाता है और वट वृक्ष की भी पूजा होती है।
👉व्रत विधि।
मुहूर्त के अनुसार स्त्रियां स्नान के पश्चात सोलह सृंगार कर रोली, सिंदूर, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। तत्पश्चात वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। अब कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन परिक्रमा करें। अंत में वृक्ष का पत्ता बालों में लगाएं। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें।
जमालपुर :-25 मई 2017 को वट सावित्री व्रत पूजा पर महासंयोग बन रहा है, इसलिए सभी सुहागनों के लिए इस वर्ष यह पूजा विशेष होगी। यह व्रत ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को आता है। सुहागन स्त्रियां इस दिन सोलह शृंगार के साथ पूरे विधि-विधान से वट वृक्ष की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा का, तने में भगवान विष्णु का तथा इसकी डालियों और पत्तों में भगवान शिव का वास होता है। इसलिए इस पूजा के साथ ही स्त्रियां अपने के लिए त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
👉वट सावित्री व्रत 2017 पूजा के शुभ मुहूर्त।
25 मई को सुबह 5 बजे अमावस्या शुरु होने के साथ ही व्रत का मुहूर्त भी शुरु हो जाएगा, जो रात्रि 1 बजे तक रहेगा।
हिंदू शास्त्रों में पतिव्रता सुहागनों के लिए वट सावित्री व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इससे पति की आयु लंबी होती है और उसके जीवन पर आया हर संकट टल जाता है। इस व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही वट वृक्ष की पूजा करते हुए स्त्रियां इसके चारों ओर लाल धागा लपेटकर इसकी परिक्रमा करते है।
👉व्रत कथा।
वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार नवविवाहिता सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हरकर जब यमराज जाने लगे तो अपने पति का जीवन वापस पाने के लिए वो यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं। जब यमराज पृथ्वी की सीमा पार कर दूसरे लोक जाने लगे तो उन्होंने सावित्री से वापस जाने को कहा। सावित्री ने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया कि अपने पत्नी धर्म के अनुसार जहां तक उसके पति जाएंगे, वह भी उनके साथ जाएगी।
सावित्री का हठ देखकर यमराज ने इसके बदले उससे तीन वरदान मांगने को कहा। पहले वरदान में सावित्री ने 100 पुत्रों की माता होने का वरदान मांगा जिसे यमराज ने दे दिया। इसपर सावित्री ने यमराज को वरदान की याद दिलाते हुए कहा कि उनके व्रत के अनुसार वह सौ पुत्रों की माता तो बन सकती है लेकिन एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के बिना ऐसा कैसे कर सकती है।
यमराज वरदान दे चुके थे, इसलिए उन्होंने चने के रूप में सत्यवान का प्राण सावित्री को सौंप दिया। जब तक यह सब हो रहा था, वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के शव की रक्षा उसी वृक्ष ने की थी, इसलिए उसके प्रति अपना धन्यवाद ज्ञापन करने के लिए उसने वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत का रक्षा-सूत्र बांधा।
यही कारण है कि व्रत के दौरान चने का प्रसाद जरूर बनाया जाता है और वट वृक्ष की भी पूजा होती है।
👉व्रत विधि।
मुहूर्त के अनुसार स्त्रियां स्नान के पश्चात सोलह सृंगार कर रोली, सिंदूर, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। तत्पश्चात वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। अब कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन परिक्रमा करें। अंत में वृक्ष का पत्ता बालों में लगाएं। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें।
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