Saturday, 15 December 2018

धूमधाम एवं श्रद्धा पूर्ण माहौल में आरंभ हुआ संतमत का 15 वां विराट अधिवेशन





जमालपुर। संतमत सत्संग आश्रम के तत्वाधान में 15वां विराट अधिवेशन का दो दिवसीय आयोजन का शुभारंभ शनिवार को आश्रम परिसर के निकट बनाए गए भव्य पंडाल में हुआ। अधिवेशन की अध्यक्षता आश्रम समिति के अध्यक्ष अर्जुन तांती एवं मंच संचालन प्रचार मंत्री राजन कुमार चौरसिया ने की। सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की स्तुति प्रार्थना, भजन-कीर्तन, ग्रंथ पाठ, संतवाणी पाठ, रामायण पाठ, सत्संग, प्रवचन एवं आरती गान के साथ विराट अधिवेशन आरंभ किया गया। इस दौरान सत्संगियों ने संतमत एवं सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज का जयकारा भी लगाया।

जो शांति को प्राप्त कर लेते हैं, वे ही संत कहलाते हैं : स्वामी चतुरानन्द महाराज

मुख्य प्रवचनकर्ता संतमत के प्रधान आचार्य पूज्यपाद स्वामी चतुरानन्द जी महाराज ने अपने प्रवचन में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सत्संग सुनने से ही सत्य सत्य का ज्ञान होता है। यह स्थूल शरीर अंधकारमय है, जो असत्य व विनाशशील है। ज्योति और प्रकाश परमात्मा के दोनों हाथ हैं। सत्संग चलता फिरता तीर्थराज प्रयाग के समान पापों को नष्ट करने वाला है। सत्संग के बिना प्राणियों में विवेक नहीं होता। जो मनुष्य शांति को प्राप्त कर लेते हैं, वही संत कहलाते हैं। संतो के मत और धर्म को ही संतमत कहते हैं। सभी धर्मों के समन्वय का मत है संतमत। सत्संग में संतों का वचन ही सुनाया जाता है। सत्संग करने से चारों फल प्राप्त होते हैं। अंधकार में अपनी छाया भी साथ नहीं देती। बुढ़ापा में यह काया साथ नहीं देती और अंत में यह सांसारिक वस्तुएं भी साथ नहीं देती। परंतु परमात्मा का भजन हमेशा साथ रहता है। इस संसार में सत्संग करना ही असली काम है। जो सत्संग करेंगे उनका कभी अहित नहीं होता है। संत चंदन की लकड़ी के समान होते हैं और असंत कुल्हाड़ी के समान। कुल्हाड़ी से काटने पर भी चंदन सुगंध ही देता है।

स्वामी वेदानंद जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि जब-जब धर्म की हानि होने लगती है, तब-तब परमात्मा संत के रूप में धरती पर अवतरण लेते हैं। जैसे हंस दूध और पानी को अलग कर देते हैं, उसी प्रकार संत लोग मनुष्य के दुर्गम को अलग करने वाले होते हैं। ऐसे हंस के समान सद्गुण और दुर्गुण को पृथक करने वाले परमात्मा रूपी महान संत ही परमहंस कहलाए। गुरु से अधिक संत की महिमा है तीनों लोक और नौ खंडों में गुरु से बड़ा कोई नहीं है। स्वामी योगानंद जी महाराज ने कहा कि सांप के दांत में विष, मधुमक्खी के सर पर विष और बिच्छू के पूछ में विष समाहित रहता है। परंतु दुष्ट व्यक्ति का पूरा शरीर ही दूषित होता है। सत्संग करने से इस विष से भरा दुष्ट मनुष्य का भी मन निर्मल हो जाता है। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि मनुष्य शरीर पाकर जो परमात्मा का गुणगान नहीं करते हैं, उसे  आत्महत्या का दोष लगता है। संत तीर्थों को भी पावन करने वाले होते हैं। स्वामी दयानंद बाबा ने कहा कि कुछ लोग अपने आचरण-व्यवहार को अच्छा नहीं रखते। परंतु, परमात्मा को पाना चाहते हैं। इसके अलावा स्वामी खगेश बाबा, स्वामी नरेंद्र बाबा, स्वामी सुरेशानंद बाबा, गुरुदेव बाबा, पूरन बाबा, गौतम बाबा, दिनेशानंद बाबा, भगतानंद बाबा, संतोषानंद बाबा, विद्यानंद बाबा, शीलनिधान बाबा, विष्णुनानंद बाबा, सरयुग बाबा, प्रभाकर बाबा ने भी आध्यात्मिक प्रवचन दिए। मौके पर सचिव ओमप्रकाश गुप्ता, सुभाष चौरसिया, सीताराम वैद्य, अधिवक्ता आशीष कुमार, विद्यानंद प्रसाद, सदानंद तूड़ी, राजेंद्र साह, सकलदेव यादव, सोहन साह, मदन प्रसाद यादव, कैलाश तांती, रामसागर महतो, अरविंद साह, संजय पंडित, वासुदेव मंडल, उदय शंकर स्वर्णकार, रामोतार पंडित, कन्हैयालाल चौरासिया, शिवशंकर राम, अभिमन्यु साह, परशुराम चौरासिया, जगदीश पंडित, भोला पासवान, अशोक मंडल, देवनारायण पासवान, नवल यादव, बबलू यादव, दिवाकर यादव, प्रेमचंद चौरासिया, मदनलाल मंडल सहित हजारों सत्संगी श्रद्धालु मौजूद थे।

No comments:

Post a Comment

nhlivemunger@gmail.com