जमालपुर। अगली पीढ़ी के स्वस्थ भविष्य को लेकर जर्मनी से भारत लौटी एनआरआई सरिता बार्बर भारत में इन दिनों जैविक खेती का अलख जगा रही है। सरिता कृषि को अध्यात्म से जोड़कर खेती के दौरान फसलों में अंधाधुंध रासायनिक खाद के प्रयोग को हमारे अगले पीढ़ी के लिए खतरा बता रही है। एक विशेष साक्षात्कार के दौरान सरिता ने बताया कि हमारा अध्यात्म एवं प्राचीन इतिहास जैविक खेती पर आधारित था। यही कारण है कि प्राचीन काल के लोग हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ होते थे। मगर, आज बदलते समय के अनुसार जिस प्रकार से किसान खेतों में अपने फसलों के उत्पादन में अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहे हैं, उसी अनुसार हमारे स्वास्थ्य पर रासायनिक उर्वरकों का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। रासायनिक उर्वरकों की मदद से उपजाए गए अनाज का सेवन करने की वजह से आज हर व्यक्ति किसी न किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। भारत देश में कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो जैविक खाद से बेहतरीन उत्पादन ले रहे हैं।
जैविक खेती में जर्मनी से 100 साल पीछे है बिहार
सरिता ने बताया कि खाद और कीटनाशक की सही जानकारी के अभाव में किसान अपने खेतों की उर्वरा शक्ति नष्ट कर रहे हैं। हमारे देश के कई राज्यों के किसानों को जैविक खेती के बारे में सही जानकारी उपलब्ध तक नहीं है। बिहार के किसान भी जैविक खेती में जर्मनी से 100 साल पीछे हैं। वह विगत 15 वर्षों से जर्मनी में रह रही हैं। वहां जैविक खेती पर उन्होंने कई प्रयोग किए हैं।
आनंद मार्ग से मिली जैविक खेती की प्रेरणा
जर्मनी ड्रेसडेन सिटी से आई सरिता बार्बर ने बताया कि आनंद मार्ग के संस्थापक प्रभात रंजन सरकार आनंदमूर्ति जी से उसे जैविक खेती की प्रेरणा मिली थी। आनंदमूर्ति जी ने कहा था कि शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक एवं आर्थिक विकास के लिए जैविक खेती ही एकमात्र साधन है। उन्होंने आनंदमूर्ति जी के इस वचन को अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया है। उनका जन्म बिहार राज्य में ही किशनगंज जिला के ठाकुरगंज में हुआ था। जर्मनी में शादी होने के बाद उन्होंने अपने पति वैज्ञानिक फ्रैंक बार्बर के साथ मिलकर जर्मनी में जैविक खेती शुरू की थी। जिसके बाद इस क्षेत्र में उन्हें लगातार सफलता मिलती गई। अपने देश एवं अपने मिट्टी से लगा होने की वजह से वह जैविक खेती क्षेत्र में अपने अनुभवों को भारत के विभिन्न राज्यों में घूम-घूमकर वह किसानों के बीच बांटने का प्रयास कर रही है। बिहार में जैविक खेती के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं हैं। बशर्ते किसानों को जैविक खेती से मिलने वाले लाभ एवं जैविक खेती की तकनीकियों से अवगत कराया जाए। जैविक खेती की वजह से कम लागत में अधिक उत्पादन किए जा सकते हैं। केंचुआ से वार्मिंग कंपोस्ट तैयार कर खेतों में जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
बहुत ही व्यवहारिक एवं सार्थक प्रयास है यह- श्रीमती सरिता बार्बर जी का। हमारी पुरातन जीवन-पद्धति प्रकृति तथा आध्यात्म का ही मिल-जुला रूप रहा है, जिसे हम आधुनिकता की अंधी-दौड़ में या तो भूल बैठे हैं या फिर बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। सरिता जी का यह भगीरथ प्रयास जैविक खेती की सरिता इस धरती पर बहा पाए- ऐसी मेरी कामना और मेरा विश्वास है। में उनके इस महत कार्य में, यदि मेरी भी कुछ सहभागिता कभी हो तो मुझे अति हर्ष और प्रसन्नता होगी। इस कार्य से जुड़े सभी सहयोगियों को मेरी शुभकामनाएं!
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